क्षेत्र परिचय

भारत वर्ष के मगध, काशी, मत्स्य, गंधार आदि सोलह जनपदो में से एक जनपद ‘मारवाड़’ वर्तमान राजस्थान में स्थित है | मारवाड़ भू-भाग प्राचीन परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है | इसी जनपद का एक नगर, राजपूत राजवंशो का साक्षी बीकाणा, वर्तमान में ‘बीकानेर’ शहर के नाम से पहचाना जाता है | राव बीका के शहर में बनी प्राचीन हवेलियां राजा-महाराजाओं के शोर्य-पराक्रम, वीरता, दानवीरता की साक्षी हैं |
‘छोटी काशी’ के नाम से विख्यात यह नगरी संत-महापुरुषों की दिव्यतम् साधना की तपस्थली भी रह चुकी है | परम विद्वान, क्रियानिष्ठ, शास्त्र संगत आचरण करने वाले महा-मुनिशियों की यह मरु-धरा त्याग, तप, सत्य, अहिंसा के कोहिनूर उगलने के लिए उर्वधर है |
राजस्थानी गौरव और संतो की साधना की गिली मिट्टी में रोपित किए बीच का फल रूप है यह आरुग्गबोहिलाभं, जिसकी सोंधी सुगंध से आकृष्ट होकर ज्ञान क्षुधातुर विहग स्वतः उड़े चले आते है और इस फल को ग्रहण कर अपनी क्षुधा शांत करते है |
यह प्रकल्प निर्ग्रंथ संत-महापुरुषों के आत्मिक चिंतन से निकला वह अमूल्य घृत है, जो सत्यान्वेषी जीव के परम कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने में सक्षम है |

आरुग्गबोहिलाभं परिचय

बीकानेर के उपनगर किश्मीदेसर में स्थित आरुग्गबोहिलाभं ज्ञान का अदभुत केंद्र है | जिसमे ध्यान, योग, न्याय, आचार, ग्रंथ, षड्दर्शन, तत्व, थोकड़े, कर्म सिद्धांत, आगम, शास्त्र अध्ययन व ज्ञान के साथ यहां आचरण को भी विशेष महत्व दिया गया है |
प्राकृतिक वातावरण के साथ प्राचीन शिक्षा का मेलजोल अत्यंत आनंदकारी है | इस आवासीय गुरुकुल में गृहकार्य की अपेक्षा ज्ञान को कन्ठस्थ करने की पुरानी परम्परा को बल दिया जाता है |
इस अध्ययन केंद्र में शुद्ध आचरण की अनुपालना करने वाला वर्ग और अन्य ज्ञान हेतु प्रवेश लेने वाले वर्ग की अलग-अलग व्यवस्थाएं है | अध्ययन केंद्र का उद्देश्य आरोग्य ज्ञान की प्राप्ति है |
आइए, हम सभी चले उस अध्ययन केंद्र की परम्परा की और ……. जहां एक ओर ज्ञान का दृश्य है तो दूसरी ओर प्रकृति की मिठास……….

प्रकल्प

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ज्ञानार्जन थोकडे

आरूग्गबोहिलाभं पुरे विश्व में ज्ञानार्जन के इच्छुक विद्यार्थियों को ऑनलाइन जैनदर्शन थोकड़ो का अध्ययन के लिए प्रेरित करता है |

book(3)

सवणे णाणे य विण्णाणे

उच्च स्तरीय जैन विद्वानों के सर्जन हेतु प्रतिबद्ध
(अन्तर्गत आरूग्गबोहिलाभं)

jain

I JAIN MY JAIN

A dive introducing Jain Ocean’s Various Glorious Pearls

cultures

पुस्तकालय

आरुग्गबोहिलाभं ज्ञान भण्डार

tools

उपकरण

लांभ आध्यात्मिक उपकरण केन्द्र

healthcare

होम्योपैथी क्लिनिक

आरुग्गं होम्यो क्लिनिक

animals

गोशाला

आरुग्गं गौ धाम

भवन की विशेषताएँ

प्राचीन समय में प्रकृति के बीच रहकर अध्ययन करवाया जाता था | वह गुरुकुल परम्परा थी, जहाँ हर समय गुरु के समीप रहकर ज्ञानार्जन किया जाता था |

लाभं भी प्रकृति से प्राप्त अवयवों से बना आश्रमनुमा भवन है जिसमें मिट्टी, चुना आदि का प्रयोग कर कक्षों का निर्माण किया गया है | इसमें सीमेंट व ईट का प्रयोग नहीं के बराबर किया है | बीच में प्राचीन आश्रम के आधार पर चौक दिया गया है | जहाँ बैठकर खुला आसमान भी देखा जा सकता है |

सर्दी व गर्मी दोनों ही मौसम के अनुकुल रहने वाला यह भवन ज्ञान में तो सहायक है की साथ में शरीर को भी स्वस्थ रखता है | छत पर आरसीसी और पट्टियों के भवन बनते ही है इस भवन में मिट्टी से बने कोल्हू का प्रयोग किया गया है | जो गुरुकुल परम्परा को पुनर्जीवित करता है |

आइये ! चले पुरातन परम्परा की ओर, जहाँ सुकून है, शांति है और ज्ञान का खजाना है |

अध्ययन व्यवस्था

आरुग्गबोहिलाभं में अध्ययन व्यवस्था से संबंधित वर्गीकरण किए गए है | उनमें संवेग शाला व निर्वेद शाला मुख्य हैं | दोनों ही शालाओं का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है | अध्ययन की सुविधा और प्रवेशार्थी के अपने संकल्पों के आधार पर इन संकायों में वर्गीकरण उनके अध्ययन शैली को बनाए रखता है | संक्षिप्त में विवरण इस प्रकार है –

  • संवेग शाला –

संवेग शाला आरुग्गबोहिलाभं की शीर्ष शाला है | इस वर्ग में मुख्य रुप से वे अध्ययनार्थी प्रवेश ले सकते हैं जिनके संकल्प मुमुक्षुत्व भाव के लिए जाग्रत हो I  संवेग शाला में साध्वाचरण की बिंदु मात्र का परिचय कराया जाता है | ज्ञान के साथ आचरण का दृढ़ता से पालन किया जाता है |

  • निर्वेद शाला –

निर्वेद शाला के अंतर्गत वे अध्ययनार्थी प्रवेश ले सकते है जो ज्ञान ध्यान सिखने के साथ ही साथ  जैन सुसंस्कारों से लाभान्वित होना चाहते है I

 

इस दोनों ही वर्गों में सत्पुरुषो का विशेष मार्गदर्शन प्राप्त होता है |